नाग और चीटियां



एक घने जंगल में एक बड़ा-सा नाग रहता था। चिड़ियों के अंडे, मेढ़क तथा छिपकलियों जैसे छोटे-छोटे जीव-जंतुओं को खाकर अपना पेट भरता था। रातभर वह अपने भोजन की तलाश में रहता और दिन निकलने पर अपने बिल में जाकर सो रहता। धीरे-धीरे वह मोटा होता गया, हालत यह हो गई कि वह इतना मोटा हो गया कि बिल के अंदर-बाहर आना-जाना भी दूभर हो गया।

आखिरकार, उसने बिल को छोड़कर एक विशाल पेड़ के नीचे रहने की सोची। लेकिन वहीं पेड़ की जड़ में चींटियों की बांबी थी और उनके साथ का रहना नाग के लिए असंभव था। सो, वह नाग उन चींटियों की बांबी के निकट जाकर बोला, ‘‘मैं सर्पराज नाग हूं, इस जंगल का राजा। मैं तुम चींटियों को आदेश देता हूं कि यह जगह छोड़कर चले जाओ।’’
वहां और भी जानवर थे, जो उस भयानक सांप को देखकर डर गए और जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे। लेकिन चींटियों ने नाग की इस धमकी पर कोई ध्यान न दिया। 

वे पहले की तरह अपने काम-काज में जुटी रहीं। नाग ने यह देखा तो उसके क्रोध का पारावार न रहा।
वह गुस्से में भरकर बांबी के निकट जा पहुंचा। यह देखा हजार-हजार चींटियाँ उस बांबी से निकल पड़ी और नाग से लिपटकर उसके शरीर पर काटने लगीं। उनके कंटीले डंकों से परेशान नाग बिलबिलाने लगा। उसकी पीड़ा असहनीय हो चली थी और शरीर पर घाव होने लगे थे। नाग ने चींटियों को हटाने की बहुत कोशिश की लेकिन असफल रहा। कुछ ही देर में उसने वहीं तड़प-तड़प कर जान दे दी।
शिक्षा—बुद्धि से काम लेने पर शक्तिशाली शत्रु को भी परास्त किया जा सकता है।

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