मुल्ला नसरुद्दीन रोज शराब घर जाते, लेकिन पीने के पहले एक प्रकिया करते थे। आखिर शराब घर के मालिक से यह देख रहा नही गया। रोज अपने खीसे से एक मेंढक निकाल कर अपने टेबल पर रख लेता। शराब पीते, पीते रहते, फिर मेंढक को उठाकर खीसे में रखकर चला जाता। ऐसा रोज होता। स्वभावतः शराबगृह के मालिक ने एक दिन कहा कि नसरुद्दीन, इसका राज हमें भी समझाओ। यह मेंढक का रोज निकालना, फिर जेब में रखना, इसका मतलब क्या है? नसरुद्दीन ने कहा, मेंढक को निकाल कर रखता हूं फिर मैं पीना शुरू करता हूं। जब एक मेंढक की जगह मुझे दो दिखाई पड़ने लगते हैं, तब मैं समझ लेता हूं अब कुछ करना जरूरी है। तो उस मालिक ने पूछा फिर क्या करते हो? उसने कहा, फिर दोनों को उठा कर खीसे में जेब में रख लेता हूं और घर चला जाता हूं।
जितनी तुम्हारी मूर्च्छा होगी उतनी चीजें जैसी हैं वैसी दिखाई नहीं पड़ेंगी। और इस आदमी को यह भी पता है कि मेंढक एक है। लेकिन वह भी कह रहा है कि फिर दोनों को उठा कर खीसे में रख लेता हूं। क्योंकि जब दो दिखाई पड़ते हैं, तो क्या किया जा सकता है? आत्मविश्वास खो जाता है, भरोसा टूट जाता है।तुमने अपने साथ जो भी किया है जन्मों-जन्मों में, उसका एक परिणाम बड़े से बड़ा जो हुआ है, जो सबसे ज्यादा आत्मघाती है, वह यह है कि तुम्हारी अपने पर श्रद्धा खो गई है। हर घड़ी तुम झूठ, बेईमानी का सहारा ले रहे हो।