पूर्णिमा से अमावस्या के ये 15 दिन पितरों को कहे जाते हैं। इन 15 दिनों में पितरों को याद किया जाता है और उनका तर्पण किया जाता है। जिन घरों में पितरों को याद किया जाता है वहां हमेशा खुशहाली रहती है। इसलिए पितृपक्ष में पृथ्वी लोक में आए हुए पितरों का तर्पण किया जाता है। जिस तिथि को पितरों का गमन (देहांत) होता है उसी दिन पितरों का श्राद्ध किया जाता है।
इस बार श्राद्धों की तिथी के क्रम
पूर्णिमा का श्राद्ध 20 सितंबर,
प्रतिपदा (पड़वा) का श्राद्ध 21 सितंबर,
द्वितीया (दोज) का श्राद्ध 22 सितंबर,
तृतीया (तीज) का श्राद्ध 23 सितंबर,
चतुर्थी का श्राद्ध 24 सितंबर,
पंचमी का श्राद्ध 25/26 सितंबर,
षष्टी का श्राद्ध 27 सितंबर,
सप्तमी का श्राद्ध 28 सितंबर,
अष्टमी का श्राद्ध 29 सितंबर,
नवमी का श्राद्ध 30 सितंबर,
दशमी का श्राद्ध 1 अक्तूबर,
एकादशी का श्राद्ध 2 अक्तूबर,
द्वादशी का श्राद्ध 3 अक्तूबर,
त्रयोदशी का श्राद्ध 4 अक्तूबर,
चतुर्दशी का श्राद्ध 5 अक्तूबर,
पितृविसर्जनी अमावस्या/अमावस्या का श्राद्ध 6 अक्तूबर।
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