Tarpan: तर्पण कैसे करें

शास्त्रों में बताया गया है कि गया, बद्रीनाथ के ब्रह्मकपाल, गोदावरी तट एवं प्रयाग में श्राद्घ और तर्पण करने से पितर जल्दी खुश हो जाते हैं और उन्हें मुक्ति मिल जाती है। लेकिन यह जरूरी नहीं कि हर व्यक्ति श्राद्घ पक्ष में इन तीर्थ स्थानों पर जाकर श्राद्घ तर्पण कर सके। इसलिए शास्त्रों में कुछ ऐसे नियम बताए गए हैं कि जिससे घर पर रह कर ही श्राद्घ पक्ष में पितरों को खुश किया जा सकता है।


जिस दिन आपके घर श्राद्ध तिथि हो, उस दिन सूर्योदय से लेकर दिन के 12 बजकर 24 मिनट की अवधि के मध्य ही श्राद्ध करें। प्रयास करें कि इसके पहले ही ब्राह्मण से तर्पण आदि करा लिए जाए। इसके लिए सुबह उठकर स्नान करना चाहिए, तत्पश्चात देव स्थान और पितृ स्थान को गाय के गोबर से लीपना चाहिए और गंगाजल से पवित्र करना चाहिए।

यदि संभव हो, तो घर के आंगन में रंगोली बनाएं। घर की महिलाएं शुद्ध होकर पितरों के लिए भोजन बनाएं। जो श्राद्ध के अधिकारी व्यक्ति हैं, जैसे श्रेष्ठ ब्राह्मण या कुल के अधिकारी जो दामाद, भतीजा आदि हो सकते हैं, उन्हें न्यौता देकर बुलाएं। इस दिन निमंत्रित ब्राह्मण के पैर धोने चाहिए। इस कार्य के समय पत्नी को दाहिनी तरफ होना चाहिए। इसके बाद ब्राह्मण से पितरों की पूजा एवं तर्पण आदि करवाएं।

पितरों के निमित्त अग्नि में गाय का दूध, दही, घी एवं खीर का अर्पण करें। ब्राह्मण भोजन से पहले पंचबलि यानी गाय, कुत्ते, कौए, देवता और चींटी के लिए भोजन सामग्री पत्ते पर निकालें। दक्षिणाभिमुख होकर कुश, तिल और जल लेकर पितृतीर्थ से संकल्प करें और एक या तीन ब्राह्मण को भोजन कराएं। इसके बाद भोजन थाली अथवा पत्ते पर ब्राह्मण हेतु भोजन परोसें।

ब्राह्मण मौन रह कर भोजन करे और कर्ता क्रोघ न करें। प्रसन्नचित होकर भोजन परोसें। भोजन के उपरांत यथाशक्ति दक्षिणा और अन्य सामग्री दान करें। इसमें गौ, भूमि, तिल, स्वर्ण, घी, वस्त्र, अनाज, गुड़, चांदी तथा नमक (जिसे महादान कहा गया है) का दान करें। इसके बाद निमंत्रित ब्राह्मण की चार बार प्रदक्षिणा कर आशीर्वाद लें। ब्राह्मण को चाहिए कि स्वस्तिवाचन तथा वैदिक पाठ करें तथा गृहस्थ एवं पितर के प्रति शुभकामनाएं व्यक्त करें।

श्राद्ध में बिल्वपत्र, मालती, चंपा, नागकेशर, कनेर, कचनार एवं लाल रंग के पुष्प का उपयोग वर्जित है। इसमें श्वेत पुष्प ही उपयोग में लाएं। श्राद्ध करने के लिए दूध, गंगाजल, मधु, वस्त्र, कुश, अभिजित मुहूर्त और तिल मुख्य रूप से अनिवार्य हैं। शास्त्र में कहा गया है कि पितृ पक्ष में अपने पितरों के निमित्त जो अपनी सामर्थ्य के अनुरूप शास्त्र विधि से श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करता है, उसके सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं और घर-परिवार, व्यवसाय तथा आजीविका में उन्नति होती है। साथ ही आपके कार्य व्यापार, शिक्षा अथवा वंश वृद्धि में आ रही रुकावटें दूर हो जाएंगी।

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