5 अक्टूबर , जाने क्यों अमृत होती है शरद पूर्णिमा इस रात को बनी खीर



 दशहरे से शरद पूर्णिमा तक चंद्रमा की चांदनी विशेष गुणकारी, श्रेष्ठ किरणों वाली और औषधियुक्त होती है। कहा जाता है कि लंकाधिपति रावण शरद पूर्णिमा की रात किरणों को दर्पण के माध्यम से अपनी नाभि पर ग्रहण करता था। इस प्रक्रिया से उसे पुनर्योवन शक्ति प्राप्त होती थी।

चांदनी रात में 10 से मध्यरात्रि 12 बजे के बीच कम वस्त्रों में घूमने वाले व्यक्ति को ऊर्जा प्राप्त होती है। सोमचक्र, नक्षत्रीय चक्र और आश्विन के त्रिकोण के कारण शरद ऋतु से ऊर्जा का संग्रह होता है और बसंत में निग्रह होता है।

इस दौरान खीर बनाकर उसे खुले आसमान के नीचे रखने का विधान किया गया है। माना जाता है कि इससे खीर में चंद्रमा का अमृत आ जाता है। यह तो है अध्यात्मिक बात, लेकिन इसका एक वैज्ञानिक पहलू भी है।

एक अध्ययन के अनुसार, दुग्ध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है। यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और आसान हो जाती है। इसी कारण ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर को खुले आसमान के नीचे रखने और अगले दिन खाने का विधान तय किया था। यह परंपरा विज्ञान पर आधारित है।

कितने फायदे वाली है यह रात


हर किसी को कम से कम 30 मिनट तक शरद पूर्णिमा की रात में चंद्रमा के सामने रहने की कोशिश करनी चाहिए। रात 10 से 12 बजे तक का समय इसके लिए बेहद उपयोगी बताया गया है। शरद पूर्णिमा की रात दमा रोगियों के लिए वरदान बनकर आती है। इस रात्रि में दिव्य औषधि को खीर में मिलाकर उसे चांदनी रात में रखकर प्रात: 4 बजे सेवन किया जाता है। रोगी को रात्रि जागरण करना पड़ता है और औ‍षधि सेवन के पश्चात 2-3 किमी पैदल चलना लाभदायक रहता है।

अधिक लाभ के लिए ये करें


आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए दशहरे से शरद पूर्णिमा तक हर रोज रात में 15 से 20 मिनट तक चंद्रमा को देखकर त्राटक करें ।

जो इन्द्रियां शिथिल हो गई हैं, उन्हें पुष्ट करने के लिए चंद्रमा की चांदनी में रखी खीर खाएं।

शरद पूर्णिमा अस्थमा के लिए वरदान की रात होती है। रात को सोना नहीं चाहिए। रात भर रखी खीर का सेवन करने से दमा खत्म होता है।

Post a Comment

Previous Post Next Post