एक बार की बात है विजयनगर राज्य में बहुत चोरी होने लगी। लोगों के घर से दिन दहाड़े कीमती सामान गायब होने लगे। लोग इस बात से बहुत डर गए और परेशान हो कर राजा कृष्णदेव राय के दरबार में पहुंचे।
यह जान कर राजा को बहुत घुस्सा आया और तुरंत अपने सैनिकों को चोरों को पकड़ने का आदेश दिया। जगह-जगह राज्य में सैनिकों को तैनात किया गया पर तब भी चोर चोरी करने में कामियाब होने लगे।
तब राजा ने अपने चतुर विदूषक तेनालीराम को इस मुश्किल का हल निकालने के लिए कहा और साथ ही राजा ने सैनिकों की एक टुकड़ी भी तेनाली के साथ भेजने के लिए आदेश दिया। पर तेनाली ने राजा से कहा की उन्हें किसी भी सेना की आवश्यकता नहीं है और वह स्वयं ही चोरों को एक हफ्ते के अन्दर पकड़ लेगा।
तेनालीराम की बात सुनकर दरबार के अन्य लोग हंसने लगे और सोचने लगे जिन चोरों को राज्य की सेना मिलकर नहीं पकड़ पा रहे हैं उसे तेनाली अकेले कैसे पकड़ेगा।
अगले दिन सुबह राज्य के कुछ लोग बात कर रहे थे की राज्य के सबसे बड़े सेठ लक्ष्मी चंद को एक नया मंत्र पता चला है जिसके मुताबिक तिज़ोरी खोल कर सोने से भी कोई चोर चोरी नहीं कर सकता। यह बात जब चोरों के कान में लगी तो वो खुश हुए।
उसी रात वो चोर सेठ लक्ष्मी चंद के घर पहुंचे। उन्होंने देखा की तिजोरी खुला हुआ है तो वो बहुत खुश हुए और उन्होंने अँधेरे में चुपके से सभी पैसे और कीमती सामन को चोरी कर लिया।
अगले दिन सुबह दरबार में जब यह बात पहुंची तो राजा सेठ पर क्रोधित हुए और बोले जब तुम जानते ही थे की राज्य में चोरी हो रही है तो तुम्हें तिज़ोरी खुला रखने की आवश्यकता क्या था? तभी सभा में तेनालीराम पहुंचे उनके पीछे दो लोगों को बांध कर रखा गया था। राजा ने पुछा ये कौन हैं? तब तेनाली ने बताया ये वो चोर हैं जो कुछ दिनों से राज्य में चोरी कर रहे हैं।
राजा ने तेनालीराम से पुछा कि तुमने ऐसा कैसे किया? तब तेनाली ने बताया – कल मैंने ही सेठ लक्ष्मी चंद को तिजोरी खुला रखने के लिए कहा था और पुरे राज्य में अपने कुछ लोगों के द्वारा इस बात को फैला दिया। सेठ के कमरे में मैंने सभी जगह जमीन पर काला रंग बिछा दिया था।
रात को जब चोर चोरी करने के लिए गए तो काला रंग उनके पैरों में लग गया। जब पैरों के निशान की मदद से हमने उनका पीछा किया तो पता चला कि उन चोरों से हमारे राज्य के पुराने मंत्री चोरी करवा रहे थे। इस प्रकार हमने चोरों को और उस पुराने मंत्री को पकड़ लिया।
राजा बहुत खुश हुए और उन्होंने तेनालीराम का धन्यवाद किया और इनाम भी दिया।
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