★ लक्ष्मीचंद सेठ को सपना आया । स्वप्न में माता लक्ष्मीजी ने कहा कि :
‘‘तुम्हारा पुण्य खत्म हो गया है । मैं अब जानेवाली हूँ । लक्ष्मी-प्राप्ति के सिवाय कोई भी वरदान माँ ले । सेठ ने कहा : ‘‘माताजी ! मौका दीजिए । कल पधारने की कृपा करें, मैं जरा सलाह कर लूँ ।
★ सुबह में सेठ उठे । अपने कुटुम्बियों को सलाह करने के लिए बुलाया । चार बेटे थे । पत्नी थी और पुत्रवधुएँ थीं । सेठ : ‘‘लक्ष्मीजी जा रही हैं । अपना पुण्य खत्म हो रहा है । लक्ष्मी माता ने वरदान माँगने को कहा है मगर लक्ष्मी को छोडकर कुछ भी माँगना है । बडी बहु ने कहा कि : ‘‘माताजी से कह दो तिजोरी हीरे-मोतियों से भर दो ।
★ मँझली बहु ने कहा कि : ‘‘जब लक्ष्मीजी जा रही हैं तो हीरे-मोती कंकड पत्थर हो जायेंगे । जब लक्ष्मीजी आनेवाली होती हैं तब मिट्टी में से भी धन हो जाता है । तिजोरियाँ हीरे-जवाहरातों से भरवाने से काम नहीं चलेगा ।
★ दूसरी बहू ने कहा कि :
‘‘ऐसा माँगो कि अपने साथ जो शत्रुता करते हैं, अपने जो दुश्मन हैं उनका सत्यानाश करके जावें ।
तीसरी बहू बडे घर की थी । बडा घर वह नहीं जो बडी ईमारत हो । बडा घर वह है जिसमें बडे में बडा जो परमात्मा है उसके प्यारों का सत्संग होता हो ।
★ उस बच्ची ने कहा कि :
‘‘ससुरजी ! अगर आप आज्ञा दें तो मैं कुछ कहूँ ।
सुठजी : बेटी, बोलो ।
बहु : ‘‘लक्ष्मीजी से शत्रुओं का नाश भी न माँगें और हीरे-जवाहरातों की तिजोरियाँ भरने का वरदान भी न माँगें । मेरी तो विनंती है कि लक्ष्मीजी से कहें : ‘‘लक्ष्मीमाता ! अगर आप वरदान देना ही चाहती हैं तो यह दो बात हम माँगते हैं : एक तो हमारे कुटुम्ब में एकता रहे और हमें सत्संग मिलता रहे । जब सत्संग मिलता रहेगा तो सुमति होगी । ‘जहाँ सुमति वहाँ सम्पत्ति नाना । लक्ष्मीजी को अकेला नहीं, नारायण के साथ यहाँ रहना पडेगा ।
★ जो नारायण के सहित लक्ष्मी है वह कुमार्ग में नहीं जाने देती । एक होता है वित्त, दूसरा होता है धन, तीसरी होती है लक्ष्मी और चौथी होती है महालक्ष्मी । यह महालक्ष्मी हमारे घर में आयेगी । इसलिए तो हम लोग महालक्ष्मी की पूजा करते हैं कि हमारे घर में धन आये, वह महालक्ष्मी ही आये ।
★ महालक्ष्मी नारायण से मिलाने का काम करेगी । वह धन कुमार्ग में नहीं ले जायेगा, सन्मार्ग में ले जायेगा ।
सेठजी ने दूसरे दिन स्वप्न में माताजी से यही वरदान माँगा । कुटुम्ब में एकता रहे और सत्संग मिलता रहे ।
माताजी बडी प्रसन्न हुई । वह बोली : ‘‘ऐसा कुछ माँग लिया है कि, अब तो मुझे सदैव तुम्हारे कुटुम्ब में वास करना पडेगा ।
जहाँ संत और सत्संग है वहाँ नारायण का वास है । जहाँ नारायण का वास है वहाँ नारायण की अर्धांगिनी लक्ष्मी तो छाया की तरह रहेगी ही ।
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