कुंभनदास और अकबर/Story of Akbar & Kumbhdass




कुंभनदास जी गोस्वामी वल्लभाचार्य के शिष्य थे। इनकी गणना अष्टछाप में थी। एक बार इन्हें अकबर के आदेश पर फतेहपुर सीकरी हाजिर होना पड़ा।

अकबर ने इनका यथेष्ठ सम्मान किया, तो भी इन्होंने इसे समय नष्ट करना समझा। बादशाह ने जब इनका गायन सुनने की इच्छा जताई तो इन्होंने यह भजन गाया:

"संतन का सिकरी सन काम ॥ टेक ॥
आवत जात पनहियाँ टूटीं, बिसरि गयो हरि नाम॥
जिनको मुख देखे दु:ख उपजत, तिनको करनी परी सलाम।
कुंभनदास लाल गिरधर बिन और सबै बे-काम॥"

सदैव परम दरिद्री रहने पर भी इन्होंने कभी किसी राजा-महाराजा से धन लेना स्वीकार नहीं किया।

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