माला पूजन विधि
किसी भी मूर्ति में जिस तरह से प्राण-प्रतिष्ठा के बाद वह मूर्ति चैतन्य हो जाती है उसी प्रकार माला के संस्कार से माला चैतन्य अवस्था में हो जाती है। माला के माध्यम से किया गया जप पूर्ण फलदाई हो जाता है । इसलिए हर साल में एक बार माला का विधि पूर्वक संस्कार अवश्य करना चाहिए ।
माला संस्कार विधि इस प्रकार है
1. साधक सर्वप्रथम स्नान आदि से शुद्ध हो कर अपने पूजा गृह में पूर्व या उत्तर की ओर मुह कर आसन पर बैठ जाए अब सर्व प्रथम आचमन, पवित्रकरण आदि करने के बाद गणेश, गुरु तथा अपने इष्ट देव/ देवी का पूजन सम्पन्न कर लें ।
2. तत्पश्चात पीपल के 9 पत्तो को भूमि पर अष्टदल कमल की भाती बिछा लें, एक पत्ता मध्य में तथा शेष आठ पत्ते आठ दिशाओ में रखने से अष्टदल कमल बनेगा, इन पत्तो के ऊपर आप माला को रख दें ।
3. अब गाय का दूध , दही , घी , गोमूत्र , गोबर से बने पंचगव्य से किसी पात्र में माला को प्रक्षालित करें । ओर पंचगव्य से माला को स्नान कराते हुए ।।
ॐ अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ऋृं लृं लॄं एं ऐं ओं औं अं अः कं खं गं घं ङं चं छं जं झं ञं टं ठं डं ढं णं तं थं दं धं नं पं फं बं भं मं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं !! इस समस्त स्वर व्यंजन का अनुनासिक उच्चारण करें ।
4 माला को पंचगव्य से स्नान कराने के बाद माला को जल से स्नान कराएं ।
5. माला को निम्न मंत्र बोलते हुए गाय के दुध से स्नान कराने के बाद जल से स्नान कराएं ।
ॐ सद्यो जातं प्रद्यामि सद्यो जाताय वै नमो नमः ! भवे भवे नाति भवे भवस्य मां भवोद्भवाय नमः ।।
6. माला को निम्न मंत्र बोलते हुए दही से स्नान कराने के बाद जल से स्नान कराएं !
ॐ वामदेवाय नमः जयेष्ठाय नमः श्रेष्ठाय नमः रुद्राय नमः कालाय नमः कल विकरणाय नमः बलाय नमः ।
बल प्रमथनाय नमः बलविकरणाय नमः सर्वभूत दमनाय नमः मनोनमनाय नमः ।।
7. माला को निम्न मंत्र बोलते हुए गाय के घी से स्नान कराने के बाद जल से स्नान कराएं ।
ॐ अघोरेभ्योथघोरेभ्यो घोर घोर तरेभ्य: सर्वेभ्य: सर्व शर्वेभया नमस्ते अस्तु रुद्ररूपेभ्य: ।।
8. माला को निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए शहद से स्नान कराने के बाद जल से स्नान कराएं ।
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात ।।
9. माला को निम्न मंत्र बोलते हुए शक्कर से स्नान कराने के बाद जल से स्नान कराएं !
ॐ ईशानः सर्व विद्यानमीश्वर सर्वभूतानाम ब्रह्माधिपति ब्रह्मणो अधिपति ब्रह्मा शिवो मे अस्तु सदा शिवोम ।। अब
10. माला को स्वच्छ वस्त्र से पोंछकर माला को कांसे की थाली अथवा किसी अन्य स्वच्छ थाली या चौकी पर स्थापित करके माला की प्राण प्रतिष्ठा हेतु अपने दाएं हाथ में जल लेकर विनियोग करके वह जल भूमि पर छोड़ दें ।
ॐ अस्य श्री प्राण प्रतिष्ठा मंत्रस्य ब्रह्मा विष्णु रुद्रा ऋषय: ऋग्यजु:सामानि छन्दांसि प्राणशक्तिदेवता आं बीजं ह्रीं शक्ति क्रों कीलकम अस्मिन माले प्राणप्रतिष्ठापने विनियोगः ।।
10. अब माला को दाएं हाथ से ढक ले और निम्न चैतन्य मंत्र बोलते हुए ऐसी भावना करे कि यह माला पूर्ण चैतन्य व शक्ति संपन्न हो रही है ।
ॐ ह्रौं जूं सः आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं ह्रौं ॐ हं क्षं सोहं हंसः ह्रीं ॐ आं ह्रीं क्रों अस्य मालाम प्राणा इह प्राणाः ।
ॐ ह्रौं जूं सः आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं ह्रौं ॐ हं क्षं सोहं हंसः ह्रीं ॐ आं ह्रीं क्रों अस्य मालाम जीव इह स्थितः ।
ॐ ह्रौं जूं सः आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं ह्रौं ॐ हं क्षं सोहं हंसः ह्रीं ॐ आं ह्रीं क्रों अस्य मालाम सर्वेन्द्रयाणी वाङ् मनसत्वक चक्षुः श्रोत्र जिह्वा घ्राण प्राणा इहागत्य इहैव सुखं तिष्ठन्तु स्वाहा !
ॐ मनो जूतिजुर्षतामाज्यस्य बृहस्पतिरयज्ञमिमन्तनो त्वरिष्टं यज्ञं समिमं दधातु विश्वे देवास इह मादयन्ताम् ॐ प्रतिष्ठ ।।
11. अब माला का गंध, अक्षत, धूप, दीप, पुष्प आदि से पंचोपचार पूजन कर, उस माला पर जिस मन्त्र की साधना करनी है उस मन्त्र को मानसिक उच्चारण करते हुए माला के प्रत्येक मनके पर रोली से तिलक लगाएं, अथवा “ॐ अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ऋृं लृं लॄं एं ऐं ओं औं अं अः कं खं गं घं ङं चं छं जं झं ञं टं ठं डं ढं णं तं थं दं धं नं पं फं बं भं मं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं” का अनुनासिक उच्चारण करते हुए माला के प्रत्येक मनके पर रोली से तिलक लगाएं । तदुपरांत माला को अपने मस्तक से लगा कर पूरे सम्मान सहित गौमुखी में स्थापित कर दें ।इतने संस्कार करने के बाद माला जप करने योग्य शुद्ध तथा सिद्धिदायक होती है ।
नित्य जप करने से पूर्व माला का संक्षिप्त पूजन निम्न मंत्र से करने के उपरान्त जप प्रारम्भ करें :
ॐ अक्षमालाधिपतये सुसिद्धिं देहि देहि सर्व मंत्रार्थ साधिनी सर्व मन्त्र साधय-साधय सर्व सिद्धिं परिकल्पय मे स्वाहा ।
ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नमः ।
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