भारत की संस्कृति में हर दिन और हर तिथि का अपना अलग महत्व है। इन्हीं पावन तिथियों में से एक है **अष्टमी**, जो हर महीने दो बार आती है – एक बार शुक्ल पक्ष में और एक बार कृष्ण पक्ष में। यानी सालभर में कुल 24 अष्टमी होती हैं। यह दिन धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से बेहद खास माना जाता है।
अष्टमी क्यों मनाई जाती है?
अष्टमी का मतलब होता है **चांद्र मास की आठवीं तिथि**। इस दिन कई धार्मिक आयोजन होते हैं और मान्यता है कि उपवास, जप, ध्यान और पूजा करने से पापों का क्षय होता है और सौभाग्य बढ़ता है। हिंदू मान्यताओं में संख्या "8" का विशेष महत्व है।
* माता दुर्गा के **आठ स्वरूप**
* भगवान विष्णु के **अष्ट अवतार**
* और **आठ दिशाएं**
ये सभी “अष्ट” संख्या को शक्ति और संतुलन का प्रतीक बनाते हैं।
कृष्ण जन्माष्टमी
अष्टमी से जुड़ा सबसे बड़ा त्योहार है **श्रीकृष्ण जन्माष्टमी**। भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष अष्टमी को भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। इस दिन भक्त उपवास रखते हैं, रात्रि जागरण करते हैं और बारह बजे रात को श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाते हैं। मंदिरों में विशेष सजावट होती है और झांकियों के माध्यम से कृष्ण लीला का प्रदर्शन किया जाता है।
दुर्गा अष्टमी
**नवरात्रि की अष्टमी** भी उतनी ही खास होती है। इस दिन मां दुर्गा की विशेष पूजा की जाती है। भक्त व्रत रखते हैं और कन्या पूजन करके उन्हें भोजन और उपहार प्रदान करते हैं। ऐसा माना जाता है कि दुर्गा अष्टमी के व्रत और पूजन से शक्ति, सुख-समृद्धि और सौभाग्य प्राप्त होता है।
आध्यात्मिक दृष्टि से महत्व
अष्टमी केवल त्योहारों से जुड़ी नहीं है, बल्कि यह आत्मिक शांति और साधना का दिन भी माना जाता है। इस दिन ध्यान, जप और पूजा करने से मानसिक संतुलन बढ़ता है और सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।
निष्कर्ष
अष्टमी केवल एक तिथि नहीं बल्कि **आस्था और श्रद्धा का पर्व** है। चाहे वह कृष्ण जन्माष्टमी हो या दुर्गा अष्टमी, दोनों ही हमें यह संदेश देते हैं कि विश्वास, भक्ति और आत्मबल से जीवन को बेहतर बनाया जा सकता है।