औषधियों गुणों से भरपूर है जौ / Benefits of Barley/Health and Nutrition



प्राचीनकाल से ही जौ का उपयोग होता रहा है। हमारे ऋषियों-मुनियों का प्रमुख आहार जौ ही था। वेदों द्वारा यज्ञ की आहुति के रूप में जौ को स्वीकारा गया है। स्वाद और आकृति के दृष्टिकोण से जौ, गेहूं से एकदम भिन्न दिखाई पड़ते हैं, किन्तु यह गेहूं की जाति का ही अन्न है अगर गुण की नज़र से देखा जाये तो जौ-गेहूं की अपेक्षा हल्का होता है और मोटा अनाज भी होता है जोकि पूरे भारत में पाया जाता है। जौ के पौधे गेहूं के पौधे के समान होते हैं और उतनी ही ऊंचाई भी होती है। जौ खासतौर पर 3 तरह की होती है। तीक्ष्ण नोक वाले, नोकरहित और हरापन लिए हुए बारीक। नोकदार जौ को यव, बिना नोक के काले तथा लालिमा लिए हुए जौ को अतयव एवं हरापन लिए हुए नोकरहित बारीक जौ को तोक्ययव कहते हैं। यव की अपेक्षा अतियव और अतियव की अपेक्षा तोक्ययव कम गुण माने वाले जाते हैं।
जौ की एक जंगली जाति भी होती है। उस जाति के जौ का उपयोग- यूरोप, अमेरिका, चीन, जापान आदि देशों में औषधियां बनाने के लिए होता है। जौ को भूनकर, पीसकर, उस आटे में थोड़ा-सा नमक और पानी मिलाने पर सत्तू बनता है। कुछ लोग सत्तू में नमक के स्थान पर गुड़ डालते हैं व सत्तू में घी और शक्कर मिलाकर भी खाया जाता है।

वैज्ञानिक मतानुसार : जौ बीमार लोगों के लिए उत्तम पथ्य है। जौमें से लेक्टिक एसिड, सैलिसिलिक एसिड, फास्फोरिक एसिड, पोटैशियम और कैल्शियम उपलब्ध होता है। जौ में अल्पमात्रा में कैरोटिन भी है। सुप्रसिद्ध मलटाइन काडलीवर नामक दवा में जौ का उपयोग होता है।


  • स्वाद : इसका स्वाद फीका होता है।
  • स्वरूप : जौ एक प्रकार का अनाज है।
  • स्वभाव : जौ शीतल व ठण्डा होता है।
  • दोषों को दूर करने वाला : घी जौ में व्याप्त दोषों को दूर करता है।
  • तुलना : जौ की तुलना हम गेहूं से कर सकते हैं।
  • गुण : जौ कब्ज पैदा करता है खून की गरमी को शांत करता है। गर्मी की प्यास और बुखार को रोकती है। यह पुराना बुखार, टी.बी. और खांसी में लाभकारी है।


जौ एक  उपयोगी अन्न है और इसका उपयोग औषधि के रूप  मे किया जा सकता है । जौ के निम्न औषधीय  गुण  है :







  •  सूजन– यदि शोध के कारण कफ दोष हो तो जौ के बारीक पिसे आटे में अंजीर का रस मिलाकर लगाना चाहिये।
  •  कंठ माला– जौ के आटे में धनिये की हरी पत्तियों का रस मिलाकर रोगी स्थान पर लगाने से कंठ माला ठीक हो जाती है। 
  •  मधुमेह (डायबटीज)– छिलका रहित जौ को भून पीसकर शहद व जल के साथ सत्तू बनाकर खायें अथवा दूध व घी के साथ दलिया का सेवन पथ्यपूर्वक कुछ दिनों तक लगातार करते करते रहने से मधूमेह की व्याधि से छूटकारा पाया जा सकता है।

  •  जलन– गर्मी के कारण शरीर में जलन हो रही हो, आग सी निकलती हो तो जौ का सत्तू खाने चाहिये। यह गर्मी को शान्त करके ठंडक पहूचाता है और शरीर को शक्ति प्रदान करता है।
  •  मूत्रावरोध– जौ का दलिया दूध के साथ सेवन करने से मूत्राशय सम्बन्धि अनेक विकार समाप्त हो जाते है।

  •  गले की सूजन– थोड़ा सा जौ कूट कर पानी में भिगो दें। कुछ समय के बाद पानी निथर जाने पर उसे गरम करके उसके कूल्ले करे। इससे शीघ्र ही गले की सूजन दूर हो जायेगी।

  •  ज्वर– अधपके या कच्चे जौ (खेत में पूर्णतः न पके ) को कूटकर दूध में पकाकर उसमें जौ का सत्तू मिश्री, घी शहद तथा थोड़ा सा दूघ और मिलाकर पीने से ज्वर की गर्मी त हो जाती है।

  •  मस्तिष्क का प्रहार– जौ का आटा पानी में घोलकर मस्तक पर लेप करने से मस्तिष्क की पित्त के कारण हूई पीड़ा शांत हो जाती है।
  •  अतिसार– जौ तथा मूग का सूप लेते रहने से आंतों की गर्मी शांत हो जाती है। यह सूप लघू, पाचक एंव संग्राही होने से उरःक्षत में होने वाले अतिसार (पतले दस्त) या राजयक्ष्मा (टी. बी.) में हितकर होता है।

  •  मोटापा बढ़ाने के लिये– जौ को पानी भीगोकर, कूटकर, छिलका रहित करके उसे दूध में खीर की भांति पकाकर सेवन करने से शरीर पर्यात हूष्ट पुष्ट और मोटा हो जाता है।

  •  धातु-पुष्टिकर योग– छिलके रहित जौ, गेहू और उड़द समान मात्रा में लेकर महीन पीस लें। इस चूर्ण में चार गुना गाय का दूध लेकर उसमे इस लुगदी को डालकर धीमी अग्नि पर पकायें। गाढ़ा हो जाने पर देशी घी डालकर भून लें। तत्पश्चात् चीनी मिलाकर लड्डू या चीनी की चाशनी मिलाकर पाक जमा लें। मात्रा 10 से 50 ग्राम। यह पाक चीनी व पीतल-चूर्ण मिलाकर गरम गाय के दूध के साथ प्रातःकाल कुछ दिनों तक नियमित लेने से वीर्य सम्बन्धी अनेक दोष समाप्त हो जाते हैं और पतला वीर्य गाढ़ा हो जाता है।
  •  पथरी– जौ का पानी पीने से पथरी निकल जायेगी। पथरी के रोगी जौ से बने पदार्थ लें।
  •  गर्भपात– जौ का छना आटा, तिल तथा चीनी-तीनों सममात्रा में लेकर महीन पीस लें। उसमें शहद मिलाकर चाटें।
  •  कर्ण शोध व पित्त– पित्त की सूजन अथवा कान की सूजन होने पर जौ के आटे में ईसबगोल की भूसी व सिरका मिलाकर लेप करना लाभप्रद रहता है।
  •  आग से जलना– तिल के तेल में जौ के दानों को भूनकर जला लें। तत्पश्चात् पीसकर जलने से उत्पन्न हुए घाव या छालों पर इसे लगायें, आराम हो जायेगा। अथवा जौ के दाने अग्नि में जलाकर पीस लें। वह भस्म तिल के तेल में मिलाकर रोगी स्थान पर लगानी चाहियें।


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