कुछ तो गड़बड़ है।

 

कुछ तो गड़बड़ है।

ये चल क्या रहा है।

क्या  दि्शा पकड़ी है।

किस तरफ बढ़ रहा है यह देश। 

किसी  चिंता है कर रहे है ।

अपने को अपने से दूर कर रहे है।

पेट भरो के पेट भर रहे है।

जिस की  चिंता होनी हो ।

वह भटक रहे है।

अरे उन्ही ने तो मौका  दिया।

अबकी बार बढ़ी उम्मीद से।

बस तक नहीं मिली,

पैदल ही चलना पड़ा, तपती गर्मी में।

और उन्ही को मौका नही।

फायदा कोई और ही ले रहा।

कुछ तो गड़बड़ है।

ये चल क्या रहा है।

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