राख् की रस्सी

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लोनपो गार   तिब्बत के बत्तीसवेंं राजा सौनगवसैन गांपो के मंत्री थे। वे अपनी चालाकी और हाजिर जवाबी के  लिए दूर दूर तक मशहूर थे। कोई उनके सामनेे  टिकता न था। चैन से  जिंदगी चल रही थी, मगर जब से उनका बेटा बड़ा हुआ था। उनके  लिए  चिंता का  विषय बना हुआ था। कारण यह था  कि वो बहुत भोला भाला था। चतुराई उसे छूकर भी नहीं गई थी। लोनपो गार ने सोचा, मेरा बेटा बहुत सीधा सादा है। मेरे बाद इसका काम कैसे चलेगा।   एक दिन लोनपो गार ने अपने बेटे को सौ भेड़े देते हुए कहा तुम इन्हें लेकर शहर जाओ मगर इन्हें मारना व बेचना नहीं। इन्हें वापस लाना सौ जौ के बोरो के साथ, वरना में तुम्हें घर में नहीं घुसने दूंगा।इसके बाद बेटा शहर की तरफ रवाना हो गया। लोनपो गार बेटज्ञ शहर पहुंच गया। मगर इतने बोरे खरीदने के  लिए पैसे ही कहां थे,     आगे .....................................................

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