किस्मत सबकी पलटा खाती है. एक वक़्त ऐसा भी आया कि मुल्ला को खाने के लाले पड़ गए. बहुत सोचने के बाद मुल्ला को लगा कि भीख मांगने से अच्छा पेशा और कोई नहीं हो सकता इसलिए वो शहर के चौक पर खड़ा होकर रोज़ भीख मांगने लगा.
मुल्ला के बेहतर दिनों में उससे जलनेवालों ने जब मुल्ला को भीख मांगते देखा तो उसका मजाक उड़ाने के लिए वे उसके सामने एक सोने का और एक चांदी का सिक्का रखते और मुल्ला से उनमें से कोई एक सिक्का चुनने को कहते. मुल्ला हमेशा चांदी का सिक्का लेकर उनको दुआएं देता और वे मुल्ला की खिल्ली उड़ाते.
मुल्ला का एक चाहनेवाला यह देखकर बहुत हैरान भी होता और दुखी भी. उसने एक दिन मौका पाकर मुल्ला से उसके अजीब व्यवहार का कारण पूछा – “मुल्ला, आप जानते हैं कि सोने के एक सिक्के की कीमत चांदी के कई सिक्कों के बराबर है फिर भी आप अहमकों की तरह हर बार चांदी का सिक्का लेकर अपने दुश्मनों को अपने ऊपर हंसने का मौका क्यों देते हैं.”
“मेरे अज़ीज़ दोस्त” – मुल्ला ने कहा – “मैंने तुम्हें सदा ही समझाया है कि चीज़ें हमेशा वैसी नहीं होतीं जैसी वो दिखती हैं. क्या तुम्हें वाकई ये लगता है कि वे लोग मुझे बेवकूफ साबित कर देते हैं? सोचो, अगर एक बार मैंने उनका सोने का सिक्का कबूल कर लिया तो अगली बार वे मुझे चांदी का सिक्का भी नहीं देंगे. हर बार उन्हें अपने ऊपर हंसने का मौका देकर मैंने चांदी के इतने सिक्के जमा कर लिए हैं कि मुझे अब खाने-पीने की फ़िक्र करने की कोई ज़रुरत नहीं है.”
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एक दिन मुल्ला के एक दोस्त ने उससे पूछा – “मुल्ला, तुम्हारी उम्र क्या है?”
मुल्ला ने कहा – “पचास साल.”
“लेकिन तीन साल पहले भी तुमने मुझे अपनी उम्र पचास साल बताई थी!” – दोस्त ने हैरत से कहा.
“हाँ” – मुल्ला बोला – “मैं हमेशा अपनी बात पर कायम रहता हूँ”.
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“जब मैं रेगिस्तान में था तब मैंने खूंखार लुटेरों की पूरी फौज को भागने पर मजबूर कर दिया था” – मुल्ला ने चायघर में लोगों को बताया.
“वो कैसे मुल्ला!?” – लोगों ने हैरत से पूछा.
“बहुत आसानी से!” – मुल्ला बोला – “मैं उन्हें देखते ही भाग लिया और वे मेरे पीछे दौड़ पड़े!”
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एक सुनसान रास्ते में घूमते समय नसरुद्दीन ने घोड़े पर सवार कुछ लोगों को अपनी और आते देखा. मुल्ला का दिमाग चलने लगा. उसने खुद को लुटेरों के कब्जे में महसूस किया जो उसकी जान लेने वाले थे. उसके मन में खुद को बचाने की हलचल मची और वह सरपट भागते हुए सड़क से नीचे उतरकर दीवार फांदकर कब्रिस्तान में घुस गया और एक खुली हुई कब्र में लेट गया.
घुडसवारों ने उसे भागकर ऐसा करते देख लिया. कौतूहलवश वे उसके पीछे लग लिए. असल में घुडसवार लोग तो साधारण व्यापारी थे. उन्होंने मुल्ला को लाश की तरह कब्र में लेटे देखा. flowers
“तुम कब्र में क्यों लेटे हो? हमने तुम्हें भागते देखा. क्या हम तुम्हारी मदद कर सकते हैं? तुम यहाँ क्या कर रहे हो?” – व्यापारियों ने मुल्ला से पूछा.
“तुम लोग सवाल पूछ रहे हो लेकिन यह ज़रूरी नहीं कि हर सवाल का सीधा जवाब हो” – मुल्ला अब तक सब कुछ समझ चुका था – “सब कुछ देखने के नज़रिए पर निर्भर करता है. मैं यहाँ तुम लोगों के कारण हूँ, और तुम लोग यहाँ मेरे कारण हो”.
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मुल्ला एक दिन दूसरे शहर गया और उसने वहां एक दूकान के सामने एक आदमी खड़ा देखा जिसकी दाढ़ी बेतरतीब बढ़ी हुई थी. मुल्ला ने उस आदमी से पूछा – “क्यों मियां, तुम दाढ़ी कब बनाते हो?”
उस आदमी ने जवाब दिया – “दिन में 20-25 बार.”
मुल्ला ने कहा – “क्यों बेवकूफ बनाते हो मियां!”
आदमी बोला – “नहीं. मैं नाइ हूँ.”
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एक दिन मुल्ला का एक दोस्त उससे एक-दो दिन के लिए मुल्ला का गधा मांगने के लिए आया. मुल्ला अपने दोस्त को बेहतर जानता था और उसे गधा नहीं देना चाहता था. मुल्ला ने अपने दोस्त से यह बहाना बनाया कि उसका गधा कोई और मांगकर ले गया है. ठीक उसी समय घर के पिछवाड़े में बंधा हुआ मुल्ला का गधा रेंकने लगा.
गधे के रेंकने की आवाज़ सुनकर दोस्त ने मुल्ला पर झूठ बोलने की तोहमत लगा दी.
मुल्ला ने दोस्त से कहा – “मैं तुमसे बात नहीं करना चाहता क्योंकि तुम्हें मेरे से ज्यादा एक गधे के बोलने पर यकीन है.”
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एक बार मुल्ला को लगा कि लोग मुफ्त में उससे नसीहतें लेकर चले जाते हैं इसलिए उसने अपने घर के सामने इश्तेहार लगाया: “सवालों के जवाब पाइए. किसी भी तरह के दो सवालों के जवाब सिर्फ 100 दीनार में”
एक आदमी मुल्ला के पास अपनी तकलीफ का हल ढूँढने के लिए आया और उसने मुल्ला के हाथ में 100 दीनार थमाकर पूछा – “दो सवालों के जवाब के लिए 100 दीनार ज्यादा नहीं हैं?”
“नहीं” – मुल्ला ने कहा – “आपका दूसरा सवाल क्या है?”
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नसरुद्दीन अपने घर के बाहर रोटियों के टुकड़े बिखेर रहा था.
उसे यह करता देख एक पड़ोसी ने पूछा – “ये क्या कर रहे हो मुल्ला!?”
“शेरों को दूर रखने का यह बेहतरीन तरीका है” – मुल्ला ने कहा.
“लेकिन इस इलाके में तो एक भी शेर नहीं है!” – पड़ोसी ने हैरत से कहा.
मुल्ला बोला – “तरीका वाकई कारगर है, नहीं क्या?”
(इदरीस शाह की कहानी)
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