इमली के औषधीय गुण health benefits of Tamarind

समस्त भारत में इमली का वृक्ष पाया जाता है। घनी छाया देने के कारण इसे सड़कों के किनारे भी लगाया जाता है। इस वृक्ष की ऊंचाई आमतौर पर 60 से 80 फुट होती है। पत्ते छोटे-छोटे और टहनी में बराबर



-बराबर लगे रहते हैं। पुष्प गुच्छों में नीचे की ओर लटके हुए सफेद और लाल होते हैं। फली गोलाकार चपटी होती है। कच्ची अवस्था में हरी और पकने पर लाल मटमैले रंग की होती है। बीज (चिएं) गहरे भूरे रंग के होते हैं। पुष्प ग्रीष्म में लगते हैं और फल शीत ऋतु के अंत तक पकते हैं।
विभिन्न भाषाओं में इमली के नाम
संस्कृत-अम्लिका
हिंदी – इमली
मराठी – चिंच
गुजराती – आम्बली
बंगाली – तेंतुल
अंग्रेजी – टेमेरिण्ड (Tamarind)
लैटिन – टेमेरिण्डस इंडिकस (Tamarindus Indicus)
इमली के औषधीय गुण
इमली आमतौर पर दो प्रकार की उपलब्ध होती है, पहली कच्ची हरी और दूसरी पकी लालिमा युक्त मटमैले रंग की। आयुर्वेदिक मतानुसार कच्ची इमली स्वाद में बेहद खट्टी, गरम, भारी,रुचिकारक, अग्नि दीपक, मलरोधक, वातनाशक, आंत्रसंकोचक, कफ़-पित्त कारक, रक्त दूषक और शूल रोग में सेवनीय है, जबकि पकी इमली वात और कफ़कारक होती है। सूखी पुरानी इमली हलकी, मधुर, रुचिकारी, बवासीर, उदर रोग, व्रणदोष,अतिसार, तृष्णा, कृमिनाशक, मद नाशक होती है। पकी इमली जितनी पुरानी होती है, उतनी ही अधिक लाभप्रद होती है।


वैज्ञानिक मतानुसार इमली की रासायनिक संरचना का विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि इसमें शर्करा 25 प्रतिशत, टार्टरिक एसिड 5 से 8 प्रतिशत, साइट्रिक एसिड 4 से 6 प्रतिशत, पोटेशियम नाई टाइट्रेट 4.7 से 6 प्रतिशत और 12 से 20 प्रतिशत तक अघुलनशील तत्व मिलते हैं। इमली के बीजों में 20 प्रतिशत तेल होता है, जो गाढ़ा और कुछ पीलापन लिए होता है।
इमली के हानिकारक प्रभाव Imli Ke Nuksaan
कच्ची इमली भारी, गरम और अति खट्टी होने के कारण हानिकारक होती है।
जिन्हें इमली अनुकूल नहीं होती, उन्हें भी पकी इमली से दांतों का खट्टा होना, सिर और जबड़ो में दर्द, सांस की तकलीफ, खांसी और बुखार जैसे दुष्परिणाम  हो सकते हैं।

यहाँ पर हम आपको बताएगें इमली के कई फायदों के बारे में. हालाकि ज्यादा इमली नहीं खाना चाहिए क्योकि इसे ज्यादा खाने से गठवा की बीमारी हो सकती है. आइये सबसे पहले जानते है कि क्या हैं Imli Ke Fayde Hindi Me –
(१)    वीर्य – पुष्टिकर योग : इमली के बीज दूध में कुछ देर पकाकर और उसका छिलका उतारकर सफ़ेद गिरी को बारीक पीस ले और घी में भून लें, इसके बाद सामान मात्रा में मिश्री मिलाकर रख लें | इसे प्रातः एवं शाम को  ५-५ ग्राम दूध के साथ सेवन करने से वीर्य पुष्ट हो जाता है | बल और स्तम्भन शक्ति बढ़ती है तथा स्व-प्रमेह नष्ट हो जाता है |
(२)     शराब एवं भांग का नशा उतारने में : नशा समाप्त करने के लिए पकी इमली का गूदा जल में भिगोकर, मथकर, और छानकर उसमें थोड़ा गुड़ मिलाकर पिलाना चाहिए |
(३)     इमली के गूदे का पानी पीने से वमन, पीलिया, प्लेग, गर्मी के ज्वर में भी लाभ होता है |
(४)     ह्रदय की दाहकता या जलन को शान्त करने के लिये पकी हुई इमली के रस (गूदे मिले जल) में मिश्री मिलाकर पिलानी चाहियें |
(५)     लू-लगना : पकी हुई इमली के गूदे को हाथ और पैरों के तलओं पर मलने से लू का प्रभाव समाप्त हो जाता है | यदि इस गूदे का गाढ़ा धोल बालों से रहित सर पर लगा दें तो लू के प्रभाव से उत्पन्न बेहोसी दूर हो जाती है |
(६)     चोट – मोच लगना : इमली की ताजा पत्तियाँ उबालकर, मोच या टूटे अंग को उसी उबले पानी में सेंके या धीरे – धीरे उस स्थान को उँगलियों से हिलाएं ताकि एक जगह जमा हुआ रक्त फ़ैल जाए |
(७)     गले की सूजन : इमली १० ग्राम को १ किलो जल में अध्औटा कर (आधा जलाकर) छाने और उसमें थोड़ा सा गुलाबजल मिलाकर रोगी को गरारे या कुल्ला करायें तो गले की सूजन में आराम मिलता है |


(८)     खांसी : टी.बी. या क्षय की खांसी हो (जब कफ़ थोड़ा रक्त आता हो) तब इमली के बीजों को तवे पर सेंक, ऊपर से छिलके निकाल कर कपड़े से छानकर चूर्ण रख ले| इसे ३ ग्राम तक घृत या मधु के साथ दिन में ३-४ बार चाटने से शीघ्र ही खांसी का वेग कम होने लगता है | कफ़ सरलता से निकालने लगता है और रक्तश्राव व् पीला कफ़ गिरना भी समाप्त हो जाता है |
(९) ह्रदय में जलन : पकी इमली का रस मिश्री के साथ पिलाने से ह्रदय में जलन कम हो जाती है |
(१०) नेत्रों में गुहेरी होना : इमली के बीजों की गिरी पत्थर पर घिसें और इसे गुहेरी पर लगाने से तत्काल ठण्डक पहुँचती है |
(११) चर्मरोग : लगभग ३० ग्राम इमली (गूदे सहित) को १ गिलाश पानी में मथकर पीयें तो इससे घाव, फोड़े-फुंसी में लाभ होगा |
(१२) उल्टी होने पर पकी इमली को पाने में भिगोयें और इस इमली के रस को पिलाने से उल्टी आनी बंद हो जाती है |
(१३) भांग का नशा उतारने में : नशा उतारने के लिये शीतल जल में इमली को भिगोकर उसका रस निकालकर रोगी को पिलाने से उसका नशा उतर जाएगा |
(१४) खूनी बवासीर : इमली के पत्तों का रस निकालकर रोगी को सेवन कराने से रक्तार्श में लाभ होता है |
(१५) शीघ्रपतन : लगभग ५०० ग्राम इमली ४ दिन के लिए जल में भिगों दे | उसके बाद इमली के छिलके उतारकर छाया में सुखाकर पीस ले | फिर ५०० ग्राम के लगभग मिश्री मिलाकर एक चौथाई चाय की चम्मच चूर्ण (मिश्री और इमली मिला हुआ) दूध के साथ प्रतिदिन दो बार लगभग ५० दिनों तक लेने से लाभ होगा |
(१६) लगभग ५० ग्राम इमली, लगभग ५०० ग्राम पानी में दो घन्टे के लिए भिगोकर रख दें उसके बाद उसको मथकर मसल लें | इसे छानकर पी जाने से लू लगना, जी मिचलाना, बेचैनी, दस्त, शरीर में जलन आदि में लाभ होता है तथा शराब व् भांग का नशा उतर जाता है | हँ का जायेका ठीक होता है |
(१७) बहुमूत्र या महिलाओं का सोमरोग : इमली का गूदा ५ ग्राम रात को थोड़े जल में भिगो दे, दूसरे दिन प्रातः उसके छिलके निकालकर दूध के साथ पीसकर और छानकर रोगी को पिला दे | इससे स्त्री और पुरुष दोनों को लाभ होता है | मूत्र- धारण की शक्ति क्षीण हो गयी हो या मूत्र अधिक बनता हो या मूत्रविकार के कारण शरीर क्षीण होकर हड्डियाँ निकल आयी हो तो इसके प्रयोग से लाभ होगा |
(१८) अण्डकोशों में जल भरना : लगभग ३० ग्राम इमली की ताजा पत्तियाँ को गौमूत्र में औटाये | एकबार मूत्र जल जाने पर पुनः गौमूत्र डालकर पकायें | इसके बाद गरम – गरम पत्तियों को निकालकर किसी अन्डी या बड़े पत्ते पर रखकर सुहाता- सुहाता अंडकोष पर बाँध कपड़े की पट्टी और ऊपर से लगोंट कास दे | सारा पानी निकल जायेगा और अंडकोष पूर्ववत मुलायम हो जायेगें |
(१९) पीलिया या पांडु रोग : इमली के वृक्ष की जली हुई छाल की भष्म १० ग्राम बकरी के दूध के साथ प्रतिदिन सेवन करने से पान्डु रोग ठीक हो जाता है |
(२०) आग से जल जाने पर : इमली के वृक्ष की जली हुई छाल की भष्म गाय के घी में मिलाकर लगाने से, जलने से पड़े छाले व् घाव ठीक हो जाते है |
(२१) पित्तज ज्वर : इमली २० ग्राम १०० ग्राम पाने में रात भर के लिए भिगो दे | उसके निथरे हुए जल को छानकर उसमे थोड़ा बूरा मिला दे |  ४-५ ग्राम इसबगोल की फंकी लेकर ऊपर से इस जल को पीने से लाभ होता है |
(२२) सर्प , बिच्छू आदि का विष : इमली के बीजों को पत्थर पर थोड़े जल के साथ घिसकर रख ले | दंशित स्थान पर चाकू आदि से छत करके १ या २ बीज चिपका दे | वे चिपककर विष चूसने लगेंगे और जब गिर पड़े तो दूसरा बीज चिपका दें | विष रहने तक बीज बदलते रहे | जब बीज चिपके नहीं और गिर जाए, तो समझे कि विष निकल चुका है। उपयोग किए बीजों को नष्ट कर दें।


23. वीर्यवर्द्धक, पुष्टिकारक योग : पानी में इमली के बीजों को कुछ दिन तक भिगो दें, ताकि छिलका आसानी से निकल जाए। छिलके निकले सफेद बीजों को सुखाकर बारीक चूर्ण बना लें। इसे घी में भूनकर इसमें समान मात्रा में मिसरी मिलाकर शीशी में भर लें। एक चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार दूध के साथ सेवन करें।

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