मकर संक्रांति को देवताओं का प्रभातकाल कहते हैं। गीता में लिखा है कि जो व्यक्ति उत्तरायण में शरीर का त्याग करता है, वह श्री कृष्ण के परम धाम में निवास करता है। पुराणों में इस दिन गंगा नदी में स्नान का विशेष महत्व बताया गया है। इस तिथि पर स्नान व दान करना बड़ा पुण्यदायी माना गया है। इससे जीवन और आत्मा के कारक सूर्य देव प्रसन्न होते हैं। इस दिन सुबह पवित्र नदी से स्नान कर तिल और गुड़ खाने की परम्परा है। मकर संक्रांति पर तिल का विशेष महत्व है। प्रचलित है कि तिल का दान करने से घर में समृद्धि आती है।
पौराणिक कथाएं
इस दिन भगवान विष्णु ने असुरों का संहार कर लंबे समय से देवताओं और असुरों के बीच जारी युद्ध के समाप्ति की घोषणा की थी. साथ ही सभी असुरों के सिरों को मंदार पर्वत में दबा दिया था. इस तरह यह दिन बुराइयों और नकारात्मकता को खत्म करने का दिन भी माना जाता है.एक अोर मान्यता है कि गंगाजी को धरती पर लाने वाले राजा भागीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए इस दिन तर्पण किया था. मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी राजा भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं. इसलिए मकर संक्रांति पर देश भर में कई जगहों पर गंगा किनारे गंगा सागर में मेला लगता है.
यशोदा जी ने जब कृष्ण जन्म के लिए व्रत किया था, तब सूर्य देवता उत्तरायण हो रहे थे और उस दिन मकर संक्रांति थी. कहा जाता है तभी से मकर संक्रांति व्रत का प्रचलन शुरू हुआ.
महाभारत में भी इसी दिन का उल्लेख किया गया है, क्योंकि भीष्म पितामह ने मकर संक्रांति के दिन प्राण त्यागे थे और मोक्ष प्राप्त किया था. इससे पहले वे बाणों की शैया पर कष्ट सहते हुए उत्तरायण का इंतजार करते रहे.
मकर संक्रांति पर सूर्य की जल चढ़ाते हुऐ इस मंत्र का 11 बार उच्चारण करना चाहिये।
सूर्याय नमः आदित्याय नमः सप्ताचिर्ष नमः
अन्य मंत्र- ऊँ घृणि सूर्याय नमः 11 बार इन मंत्रों का उच्चारण कर अपनी मनोकामना माँगे तो सूर्य देव आपकी मनोकामना जरूर पूरी करेंगे।
अर्घ के जल में क्या मिलाये - गुड़ और चावल, मकर संक्रांति पर क्या दान करे - कंबल, गुड़, तिल खिचड़ी का दान जीवन में भाग्य लाता है।
मान्यता है कि दक्षिणायन अंधकार की अवधि है, इसलिए उस वक्त मृत्यु होने पर मनुष्य को मुक्ति नहीं मिलती. वहीं, सूर्यदेव का उत्तरायण होना शुभ माना जाता है, क्योंकि यह प्रकाश की अवधि होती है. इसलिए भीष्म पितामह ने शरीर त्याग करने के लिए इसी दिन को सबसे उपयुक्त माना.
इस पर्व से जुड़ी एक पुरानी मान्यता यह भी है कि इस दिन भगवान सूर्य अपने बेटे शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाया करते हैं. चूंकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, इसलिए इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है.
भीष्म पितामह ने मकर संक्रांति के दिन शरीर त्याग किया था
पर्व एक, मनाने की विधियां अनेक
भारत के अलग-अलग प्रदेशों में मकर संक्रांति के पर्व को अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है. हर प्रांत में इसका नाम और मनाने का तरीका अलग-अलग होता है.आंध्र प्रदेश, केरल और कर्नाटक में इसे केवल संक्रांति कहा जाता है और तमिलनाडु में इसे पोंगल पर्व के रूप में मनाया जाता है. पंजाब और हरियाणा में इस समय नई फसल का स्वागत किया जाता है और संक्रांति से एक दिन पहले लोहड़ी पर्व के तौर पर मनाया जाता है.
वहीं असम में बिहू के रूप में इस पर्व को उल्लास के साथ मनाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन गंगा, यमुना और सरस्वती के त्रिवेणी संगम, प्रयाग में सभी देवी-देवता अपना स्वरूप बदलकर स्नान के लिए आते हैं. इसलिए मान्यता है कि इस दिन गंगा और दूसरी पवित्र नदियों में स्नान करने से सभी कष्टों का निवारण हो जाता है.
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