इन मंत्रों के उच्चारण से प्रसन्न होंगी मां दुर्गा, इस जगह रखें मां दुर्गा की मूर्ति

शारदीय नवरात्रि में आदि शक्ति श्री दुर्गा भवानी की अंशावतार श्री महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के रूप में त्रिशक्तियों की महापूजा का विधान शास्त्रों में वर्णित है। नवरात्रि के प्रथम तीन दिवसों में श्री महाकाली की तथा मध्य के तीन दिवसों में श्री महालक्ष्मी और अंतिम तीन दिवसों में श्री महासरस्वती की शास्त्र सम्मत उपासना का विधान है। इनके जप मंत्र अलग-अलग हैं। श्री मार्कण्डेय पुराण के देव्यथर्वशीर्ष में स्पष्ट कहा गया है-‘हे देवि! आप चित्तस्वरूपिणी महासरस्वती हैं। सम्पूर्ण द्रव्य, धन-धान्य रूपिणी महालक्ष्मी हैं तथा आनन्द रूपिणी महाकाली हैं। पूर्णत्व पाने के लिए हम सब आपका ध्यान करते हैं। मेरी अविज्ञता, अज्ञानता, अवगुण रूपी रज्जु की दृढ़ ग्रंथि को काट कर शक्ति प्रदान करें।’
सम्पूर्ण जगत शक्ति से ओत-प्रोत है। आदि शक्ति अपने अनेक रूपों में व्याप्त है। जितने भी स्त्रीलिंग शब्द है, सब शक्ति के ही रूप हैं। जगत में तीन प्रधान शक्तियां हैं, उन्हीं की माया से इस संपूर्ण संसार का संचालन हो रहा है। नवरात्रि में शक्ति पूजन के अखंड ज्योति, श्री गणेश, भूमि, संकल्प के उपरांत कलश, नवग्रह, भैरव आदि का पूजन करना आवश्यक माना गया है।

नवरात्रि की प्रतिपदा तिथि से तृतीया तिथि तक श्री महाकाली के स्वरूप के पूजन करने से पूर्व आदि शक्ति के नौ स्वरूपों...
2/2 नवरात्रि की प्रतिपदा तिथि से तृतीया तिथि तक श्री महाकाली के स्वरूप के पूजन करने से पूर्व आदि शक्ति के नौ स्वरूपों...

नवरात्रि की प्रतिपदा तिथि से तृतीया तिथि तक श्री महाकाली के स्वरूप के पूजन करने से पूर्व आदि शक्ति के नौ स्वरूपों- शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणि, चन्द्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री का पूजन क्रमश: नौ सुपारी की ढेरी पर स्थापित कर कुमकुम, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य, फल आदि अर्पित कर पूजन करें। इसके बाद श्री महाकाली का पूजन कर ‘ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै’ की एक माला तथा ‘क्रीं ह्रीं हुं दक्षिण कालिके क्रीं ह्रीं हुं नम:’ मंत्र की 11 माला जप करें।


स्मरण रहे पूजा स्थान में श्री दुर्गा जी का चित्र या मूर्ति का मुंह दक्षिण दिशा में रखना शुभ फल देता है, पूर्व दिशा में विजय श्री प्रदान करता है और पश्चिम दिशा में कार्य सिद्ध करता है। इनका मुख उत्तर दिशा में नही होना चाहिए।

चतुर्थी से षष्ठी तिथि तक श्री महालक्ष्मी का पूजन कर ‘ऊं श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मी आगच्छ ऊं नम:’ मंत्र की 11 माला प्रतिदिन जप करें। इसी प्रकार सप्तमी से नवमी तिथि तक श्री महासरस्वती का पूजन कर ‘ऊं ऐं ऐं वागीश्वर्यै ऐं ऐं ऊं नम:’ मंत्र की 11 माला जप करें। इसके अतिरिक्त नौ दिन एक-एक माला ‘ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै’ तथा ‘ऊं ह्रीं दुं दुर्गायै नम:’ मंत्र का भी जाप निशाकाल में अवश्य करें। नवरात्रि के अंतिम दिवस इन्हीं मंत्रों की अलग-अलग 108 आहुतियां अग्नि को समर्पित करें।

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