पितृ विसर्जन कर्म के ये 11 नियम ध्यान में रखना हैं बेहद जरूरी

पितृपक्ष का अंत होने ही होने वाला हैं।आखिरी के दिनों में कुछ सावधानियां बरतनी आवश्यक हो जाती हैं। पितृपक्ष के दिनों में हिंदू धर्म के लोग अपने पितरों को जल अर्पित करते हैं। इसके अलावा इन दिनों में जिस तिथि को उनके परिजनों की मौत हुई है, उसी दिन उनका वे श्राद्ध कराते हैं। अगर आपको आपके पूर्वजों की तिथि का अंदाजा नहीं है तो अमावस्या के दिन उनका श्राद्ध करके उनका आदर कर सकते हैं। श्राद्ध में ब्राह्मणों को भोज करवाया जाता है और ज्यादा से ज्यादा गरीबों को दान दिया जाता है। श्राद्ध के दौरान कई सावधानियां रखनी होती है।  अगर इस दौरान कोई गलती हो जाती है तो पितर नाराज हो जाते हैं, ऐसे में हम आपके लिए लाए हैं श्राद्ध से जुड़े ऐसे 11 नियम, जिनका ख्याल रखना बेहद जरूरी है।


-श्राद्ध गुप्त रूप से करना चाहिए। श्राद्ध कर्म में गाय का घी, दूध या दही ही काम में लेना चाहिए।

-श्राद्ध में चांदी के बर्तनों का उपयोग शुभ माना जाता है, हालांकि, सभी बर्तन चांदी के नहीं है तो केवल एक बर्तन से भी काम चल सकता है।

-श्राद्ध में ब्राह्मणों को भोजन करवाना जरूरी है। जो व्यक्ति बिना ब्राह्मण के श्राद्ध कर्म करता है, उसका श्राद्ध पूरा नहीं होता है। इसलिए श्राद्ध वाले दिन कम से कम एक ब्राह्राण को तो भोजन जरूर कराएं।

-श्राद्ध में ब्राह्माण को भोजन करवाते समय परोसने के बर्तन को दोनों हाथों से पकड़ना चाहिए। कहा जाता है कि एक हाथ से लाए अन्न पात्र से परोसा हुआ भोजन राक्षस छीन लेते हैं।

-ब्राह्मण को भोजन मौन रहकर कराएं क्योंकि पितर तब तक ही भोजन ग्रहण करते हैं, जब तक ब्राह्मण मौन रहकर भोजन करता है। इसलिए भोजन कराते और भोजन करते समय मौन रहना चाहिए।

-श्राद्ध के भोजन में खाना सादा होना चाहिए, ज्यादा मसालेदार नहीं होना चाहिए। पितर के पसंद का खाने बनाएंगे तो अति उत्तम होगा। इसके अलावा इसका भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि श्राद्ध वाले दिन खान में लहसून और प्याज का इस्तेमाल ना करें।

-श्राद्ध हमेशा अपने ही घर में करना चाहिए, किसी और के घर में किया गया श्राद्ध का कोई फल नहीं मिलता। मंदिर या किसी भी तीर्थ स्थल पर भी श्राद्ध किया जा सकता है।

-श्राद्ध करते समय ब्राह्मण का चयन भी सोच समझकर करना चाहिए। ब्राह्मण उच्च कोटी का हो, जिसे धर्म शास्त्र का ज्ञान हो क्योंकि श्राद्ध में पितरों की तृप्ति ब्राह्मणों द्वारा ही होती है।

 

-यदि आपके घर के आसपास घर की बेटी, दामाद या नाति-नातिन रहते हैं तो उन्हें श्राद्ध के भोज में जरूर शामिल करें। ऐसा करने से पितर प्रसन्न होते हैं और जो श्राद्ध में इन्हें भोजन नहीं कराता, उसके यहां पितर के साथ ही देवता भी अन्न ग्रहण नहीं करते।

-श्राद्ध करते समय यदि कोई भिखारी आ जाए तो उसे आदर पूर्वक भोजन करवाना चाहिए। जो व्यक्ति ऐसे समय में घर आए भिखारी को भगा देता तो उसका श्राद्ध कर्म पूर्ण नहीं माना जाता और उसका फल भी नष्ट हो जाता है।

– ब्राह्मणों को भोजन के बाद घर के द्वार तक पूरे सम्मानके साथ विदा करके आएं। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि ब्राह्मणों के साथ साथ पितर लोग भी चलते हैँ। ब्राह्मणों के भोजन के बाद ही अपने परिजनों, दोस्तों और रिश्तेदारों को भोजन कराएँ।

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