एक बार कोई दुष्ट व्यक्ति साधु का वेश बनाकर लोगों को अपने जाल में फंसाता और धतूरा आदि खिलाकर लूट लेता था । यह काम वह उनके शत्रुओं के कहने पर धन के लालच में करता था । धतूरा खाकर कोई व्यक्ति मर जाता तो कोई पागल हो जाता था ।
तेनालीराम को यह बात पता चली तो उन्हें बड़ा दुख हुआ । उन्होंने सोचा कि ऐसे व्यक्ति को दण्ड अवश्य ही मिलना चाहिए । मगर एकाएक ही कुछ नहीं किया जा सकता था क्योंकि धतूरा खिलाने वाले व्यक्ति के खिलाफ कोई सबूत नहीं था, यही कारण था कि वह सरेआम सीना-ताने सड़कों पर घूम रहा था ।
तेनालीराम को पता चला कि एक व्यक्ति आजकल पागल हुआ सड़कों पर घूम रहा है और वह उस साधु का ताजा-ताजा शिकार है । एक दिन तेनालीराम की नजर धतूरा खिलाने वाले उस धूर्त पर पड़ी तो वे उसके पास पहुंचे और बातों में उलझाकर उस पागल के पास ले गए ।
फिर मौका पाकर उसका हाथ पागल के सिर पर दे मारा । उस पागल ने आव देखा न ताव, उसके बाल पकड़कर उसका सिर एक-पत्थर से टकराना शुरू कर दिया । पागल तो वह था ही, अपने जुनून में उसने उसे तभी छोड़ा जब उसके प्राण पखेरू उड़ गए । मामला महाराज तक पहुंचा ।
उस दुष्ट के रिश्तेदारों ने तेनालीराम पर आरोप लगाया कि उसने जानबूझकर उस व्यक्ति को पागल से मरवा दिया । महारज ने पागल को तो पागलखाने में भिजवा दिया, मगर क्रोध में तेनालीराम को यह सजा दी कि उसे हाथी के पांव से कुचलवा दिया जाए क्योंकि इसने पागल का सहारा लेकर इस प्रकार एक व्यक्ति की हत्या की है ।
दो सिपाही उसी दिन शाम को तेनालीराम को जंगल में एक सुनसान स्थान पर ले गए और गरदन तक उसे धरती में गाड़कर हाथी लेने चले गए । सिपाहियों को गए हुए अभी कुछ ही समय हुआ था कि एक कुबड़ा धोबी वहां आ पहुंचा : ”क्यों भई! यह क्या माजरा है ? तुम इस तरह जमीन में क्यों गड़े हो ?”
”भाई! मैं भी कभी तुम्हारी तरह कुबड़ा था । पूरे दस वर्षों तक मैं इस कष्ट से दुखी रहा । जो देखता, वही मुझ पर हंसताथा । यहां तक कि मेरी पत्नी भी मुझे अपमानित करती थी । आखिर एक दिन मुझे एक महात्मा मिले ।
उन्होंने मुझे बताया कि इस पवित्र स्थान पर गरदन तक धरती में धंसकर बिना एक भी शब्द बोले, औखें बंद किए खड़े हो जाओगे तो तुम्हारा सारा कष्ट दूर हो जाएगा । मिट्टी खोदकर मुझे बाहर निकालकर जरा देखो तो सही मे कूबड़ दूर हुआ या नहीं ।”
यह सुनते ही धोबी जल्दी-जल्दी उसके चारों ओर की मिट्टी हटाने लगा । कुछ देर बाद जब तेनालीराम बाहर आया तो धोबी ने देखा कि उसकी पीठ पर तो कूबड़ का नामो-निशान भी नहीं है । वह बोला- ”मित्र! मैं भी वर्षों से कूबड़ के इस बोझ को अपनी पीठ पर लादे घूम रहा हूं । मैं भी अब इससे छुटकारा पाना चाहता हूं ।
मेहरबानी करके मुझे भी यहीं गाड़ दो और मेरे ये कपड़े धोबी टोले में जाकर मेरी बीवी को दे देना । उसे यहां का पता बताकर कह देना कि मेराकल सुबह का नाश्ता वह यहीं ले आए । मेरे दोस्त! मैं जीवन भर तुम्हारा यह एहसान नहीं भूलूंगा ।
और हां, मेरी पत्नी को यह हरगिज न बताना कि कल तक मेरा यह कूबड़ ठीक हो जाएगा । मैं कल उसे हैरान होते देखना चाहता हूं ।” ”बहुत अच्छा ।” तेनालीराम ने कहा, फिर उसे गरदन तक धरती में गाड़ दिया और उसके कपड़ों की गठरी उठाकर धोबी टीले की ओर चलने को हुआ लेकिन जाने से पहले वह उसे यह हिदायत देना नहीं भूला था:
”अपनी आखें और मुंह बंद रखना मित्र । चाहे कुछ भी क्यों न हो जाए यदि तुमने औखें खोलीं या मुंह से कोई आवाज निकाली तो तुम्हारी सारी मेहनत बेकार चली जाएगी अएएर तुम्हारा यह कूबड़ भी बढ्कर दोगुना हो जाएगा ।”
”तुम चिन्ता मत करो मित्र । इस कूबड़ के कारण मैंने बड़े दुख उठाए हैं । इससे छुटकारा पाने के लिए मैं कुछ भी करने को तैयार हूं ।” धोबी ने उसे आश्वासन दिया ।इसके बाद तेनालीराम चलता बना । उधर, राजा के सिपाही जब उस स्थान पर हाथी को लेकर पहुंचे तो वहां तेनालीराम के स्थान दर किसी अन्य को देखकर चौंके और उससे पूछा- ”ऐ ! तू कौन है ? किसने तुझे इस खड्डे में गाड़ा है ।”
धोबी कुछ न बोला । ”ओ मूर्ख! कुछ बोलता क्यों नहीं, यहां सजा प्राप्त एक आदमी गड़ा हुआ था और हम हाथी से उसका सिर कुचलवाने के लिए हाथी लेने गए थे । लगता है तू अपराधी का कोई रिश्तेदार है और तूने उसे भगा दिया है । खैर! कोई बात नहीं, हम तेरा ही सिर कुचलवा देते हैं ।”
यह सुनते ही धोबी की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई । जल्दी से उसने औखें खोलीं और बोला: ”नहीं-नहीं दरोगा जी, ऐसा जुल्म न करना : मैं किसी अपराधी का रिश्तेदार नहीं बल्कि कुबड़ा धोबी हूं । मैं तो अपना कूबड़ ठीक करने के लिए…।” इस प्रकार उसने उन्हें पूरी बात बता दी ।
”अरे मूर्ख! इस प्रकार भी भला किसी का कूबड़ ठीक होता है: तूने एक अपराधी की मदद करके उसे भगाया है, अब तुझे दण्ड मिलेगा ।” धोबी ने सोचा कि बुरे फंसे । मगर उसने अपना संयम नहीं खोया और कुछ सोचकर बोला: ”देखिए दरोगा जी! यदि आप मुझे दण्ड दिलवाएंगे तो दण्ड से आप भी नहीं बचेंगे ।
मृत्युदण्ड पाए उस खतरनाक अपराधी को आपको अकेला नहीं छोड़ना चाहिए था । आपकी लापरवाही के कारण ही वह भाग निकला-जब महाराज को मैं ये बात समझा दूंगा तो दोषी मैं नहीं, आप माने जाएंगे ।” सिपाहियों को तुरन्त यह बात समझ आ गई, मगर अब करें भी तो क्या ?
तभी उन्हें एक वृद्ध अपनी ओर आता दिखाई दिया । ”क्या बात है दरोगा जी-किस उलझन में फंसे हैं ।” दरोगा ने उस वृद्ध को जल्दी-जल्दी पूरी बात बताई तो वृद्ध बोला- ”आप व्यर्थ ही चिंतित हो रहे हैं । आप फौरन जाकर महाराज से कहें कि अपराधी को धरती निगल गई । बाकी कोई जिक्र आप लोग करना ही मत ।”
सिपाहियों की समझ में पूरी बात आ गई । वह वृद्ध और कोई नहीं तेनालीराम थे । उधर-किसी सूत्र से महाराज को उस व्यक्ति की हकीकत पता चल चुकी थी कि वह धूर्त और पाखण्डी था । महाराज का क्रोध भी अब चूंकि शान्त हो चुका था, इसलिए उन्हें तेनालीराम की बहुत याद आ रही थी और साथ ही दुख भी हो रहा था कि क्यों उन्होंने क्रोध में आकर ऐसा सख्त आदेश दिया ।
तभी वे दोनों सिपाही और वह बूढ़ा वहां हाजिर हुए तथा बताया कि महाराज अपराधी को धरती निगल गई । सुनते ही महाराज खुशी से उछल पड़े: ”वाह-वाह! हम समझ गए कि तेनालीराम अपनी बुद्धि से बच निकला है, ईश्वर का लाख-लाख शुक्र है-तुम लोग हालांकि दण्ड के अधिकारी हो, किन्तु तेनालीराम के जीवित बचने की खुशी में हम तुम्हें अभयदान देते हैं, मगर शर्त यह है कि तुम्हें कल तक तेनालीराम को हमारे समक्ष हाजिर करना होगा, अन्यथा तुम्हें कठोर दण्ड दिया जाएगा ।”
”महाराज की जय हो ।” तभी सिपाहियों के साथ आए बूढ़े ने अपना वेश उतार दिया और बोला: ”तेनालीराम हाजिर है ।” ”ओह! तेनालीराम…।” महाराज ने उसे गले से लगा लिया: ”हम अपने फैसले पर बहुत पछता रहे थे ।” उनसे जलने वाले दरबारी एक बार फिर मन मारकर रह गए कि कमीना इस बार तो मृत्यु को ही धोखा देकर लौट आया ।
Story of Tenali Raman # 3. कर्ज का बोझ |
एक बार तेनालीराम की पत्नी बीमार पड गई तो तेनालीराम को उसके इलाज के लिए महाराज से हजार स्वर्ण मुद्राएं उधार लेनी पड़ी । खैर, उचित देखभाल और इलाज से उसकी पत्नी ठीक हो गई ।
एक दिन महाराज ने तेनालीराम से कहा- ”तेनालीराम! अब हमारा कर्जा चुकाओ ।” तेनालीराम कर्ज की वह रकम देना नहीं चाहते थे । अत: हां-हूं और आज-कल करके बात को टाल रहे थे । एक बार महाराज ने उससे बड़ा ही सख्त तगादा कर दिया ।
महाराज जितना सख्त तगादा करते, तेनालीराम की कर्ज न देने की इच्छा दृढ़ होती जाती । एक दिन तेनालीराम ने सोचा कि राजा का कर्ज राजा के मुंह से ही माफ करवाऊंगा । दूसरे दिन ही महाराज के पास खबर आई की तेनालीराम बहुत सख्त बीमार हैं और अगर अंतिम समय में महाराज उसका चेहरा देखना चाहते हैं तो देख लें ।
महाराज फौरन उसके घर पहुंचे, देखा कि तेनालीराम बिस्तर पर पडे हैं और उनकी पत्नी और मां रो रही हैं । महाराज को देखते ही तेनाली की पत्नी बोली: ”महाराज यह बड़े कष्ट में हैं । इनके बचने की कोई उम्मीद नहीं है । मगर कहते हैं कि जब तक मुझ पर राजा का उधार है, तब तक मेरे प्राण आसानी से नहीं निकलेंगे ।”
महाराज की आखें भर आईं । वे बोले: ”तेनालीराम! मुझे तुम्हारी मृत्यु का दुःख तो बहुत होगा । तुम्हारी कमी मेरे जीवन में कोई पूरी नहीं कर सकता, मगर मैं तुम्हें इस प्रकार कष्ट भोगते भी नहीं देख सकता-मैंने तुम्हारा कर्ज माफ किया तेनालीराम-सच तो यह है कि ये मुद्राएं मैं वापस लेना ही नहीं चाहता था, मैं तो कर्ज का तगादा कर-करके यह देखना चाहता था कि देखें इस कर्ज से तुम किस प्रकार मुक्ति पाते हो ।”
”फिर ठीक है महाराज!” तेनालीराम बिस्तर से उठ खड़े हुए । ”अरे…अरे तेनालीराम-तुम्हारी तबीयत…।” ”अब बिस्कूल ठीक है महाराज- दरअसल मैं तो आपके कर्ज के बोझ से मर रहा था, किन्तु अब जब आपने कर्ज माफ ही कर दिया है तो कैसा मरना-आप धन्य हैं महाराज, जो आपने मुझे असमय ही मरने से बचा लिया-मैं तो चाहता हूं कि मैं जन्म-जन्म आप जैसे कृपालु राजा की सेवा करता रहूं ।” ठगे हुए से महाराज उसका चेहरा देखते रह गए ।
यह सुनते ही धोबी जल्दी-जल्दी उसके चारों ओर की मिट्टी हटाने लगा । कुछ देर बाद जब तेनालीराम बाहर आया तो धोबी ने देखा कि उसकी पीठ पर तो कूबड़ का नामो-निशान भी नहीं है । वह बोला- ”मित्र! मैं भी वर्षों से कूबड़ के इस बोझ को अपनी पीठ पर लादे घूम रहा हूं । मैं भी अब इससे छुटकारा पाना चाहता हूं ।
मेहरबानी करके मुझे भी यहीं गाड़ दो और मेरे ये कपड़े धोबी टोले में जाकर मेरी बीवी को दे देना । उसे यहां का पता बताकर कह देना कि मेराकल सुबह का नाश्ता वह यहीं ले आए । मेरे दोस्त! मैं जीवन भर तुम्हारा यह एहसान नहीं भूलूंगा ।
और हां, मेरी पत्नी को यह हरगिज न बताना कि कल तक मेरा यह कूबड़ ठीक हो जाएगा । मैं कल उसे हैरान होते देखना चाहता हूं ।” ”बहुत अच्छा ।” तेनालीराम ने कहा, फिर उसे गरदन तक धरती में गाड़ दिया और उसके कपड़ों की गठरी उठाकर धोबी टीले की ओर चलने को हुआ लेकिन जाने से पहले वह उसे यह हिदायत देना नहीं भूला था:
”अपनी आखें और मुंह बंद रखना मित्र । चाहे कुछ भी क्यों न हो जाए यदि तुमने औखें खोलीं या मुंह से कोई आवाज निकाली तो तुम्हारी सारी मेहनत बेकार चली जाएगी अएएर तुम्हारा यह कूबड़ भी बढ्कर दोगुना हो जाएगा ।”
”तुम चिन्ता मत करो मित्र । इस कूबड़ के कारण मैंने बड़े दुख उठाए हैं । इससे छुटकारा पाने के लिए मैं कुछ भी करने को तैयार हूं ।” धोबी ने उसे आश्वासन दिया ।इसके बाद तेनालीराम चलता बना । उधर, राजा के सिपाही जब उस स्थान पर हाथी को लेकर पहुंचे तो वहां तेनालीराम के स्थान दर किसी अन्य को देखकर चौंके और उससे पूछा- ”ऐ ! तू कौन है ? किसने तुझे इस खड्डे में गाड़ा है ।”
धोबी कुछ न बोला । ”ओ मूर्ख! कुछ बोलता क्यों नहीं, यहां सजा प्राप्त एक आदमी गड़ा हुआ था और हम हाथी से उसका सिर कुचलवाने के लिए हाथी लेने गए थे । लगता है तू अपराधी का कोई रिश्तेदार है और तूने उसे भगा दिया है । खैर! कोई बात नहीं, हम तेरा ही सिर कुचलवा देते हैं ।”
यह सुनते ही धोबी की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई । जल्दी से उसने औखें खोलीं और बोला: ”नहीं-नहीं दरोगा जी, ऐसा जुल्म न करना : मैं किसी अपराधी का रिश्तेदार नहीं बल्कि कुबड़ा धोबी हूं । मैं तो अपना कूबड़ ठीक करने के लिए…।” इस प्रकार उसने उन्हें पूरी बात बता दी ।
”अरे मूर्ख! इस प्रकार भी भला किसी का कूबड़ ठीक होता है: तूने एक अपराधी की मदद करके उसे भगाया है, अब तुझे दण्ड मिलेगा ।” धोबी ने सोचा कि बुरे फंसे । मगर उसने अपना संयम नहीं खोया और कुछ सोचकर बोला: ”देखिए दरोगा जी! यदि आप मुझे दण्ड दिलवाएंगे तो दण्ड से आप भी नहीं बचेंगे ।
मृत्युदण्ड पाए उस खतरनाक अपराधी को आपको अकेला नहीं छोड़ना चाहिए था । आपकी लापरवाही के कारण ही वह भाग निकला-जब महाराज को मैं ये बात समझा दूंगा तो दोषी मैं नहीं, आप माने जाएंगे ।” सिपाहियों को तुरन्त यह बात समझ आ गई, मगर अब करें भी तो क्या ?
तभी उन्हें एक वृद्ध अपनी ओर आता दिखाई दिया । ”क्या बात है दरोगा जी-किस उलझन में फंसे हैं ।” दरोगा ने उस वृद्ध को जल्दी-जल्दी पूरी बात बताई तो वृद्ध बोला- ”आप व्यर्थ ही चिंतित हो रहे हैं । आप फौरन जाकर महाराज से कहें कि अपराधी को धरती निगल गई । बाकी कोई जिक्र आप लोग करना ही मत ।”
सिपाहियों की समझ में पूरी बात आ गई । वह वृद्ध और कोई नहीं तेनालीराम थे । उधर-किसी सूत्र से महाराज को उस व्यक्ति की हकीकत पता चल चुकी थी कि वह धूर्त और पाखण्डी था । महाराज का क्रोध भी अब चूंकि शान्त हो चुका था, इसलिए उन्हें तेनालीराम की बहुत याद आ रही थी और साथ ही दुख भी हो रहा था कि क्यों उन्होंने क्रोध में आकर ऐसा सख्त आदेश दिया ।
तभी वे दोनों सिपाही और वह बूढ़ा वहां हाजिर हुए तथा बताया कि महाराज अपराधी को धरती निगल गई । सुनते ही महाराज खुशी से उछल पड़े: ”वाह-वाह! हम समझ गए कि तेनालीराम अपनी बुद्धि से बच निकला है, ईश्वर का लाख-लाख शुक्र है-तुम लोग हालांकि दण्ड के अधिकारी हो, किन्तु तेनालीराम के जीवित बचने की खुशी में हम तुम्हें अभयदान देते हैं, मगर शर्त यह है कि तुम्हें कल तक तेनालीराम को हमारे समक्ष हाजिर करना होगा, अन्यथा तुम्हें कठोर दण्ड दिया जाएगा ।”
”महाराज की जय हो ।” तभी सिपाहियों के साथ आए बूढ़े ने अपना वेश उतार दिया और बोला: ”तेनालीराम हाजिर है ।” ”ओह! तेनालीराम…।” महाराज ने उसे गले से लगा लिया: ”हम अपने फैसले पर बहुत पछता रहे थे ।” उनसे जलने वाले दरबारी एक बार फिर मन मारकर रह गए कि कमीना इस बार तो मृत्यु को ही धोखा देकर लौट आया ।
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