घने मुलायम काले केशों के लिए प्रसिद्ध भृंगराज के स्वयंजात शाक १८०० मीटर की ऊंचाई तक आर्द्रभूमि में जलाशयों के समीप बारह मास उगते हैं |सुश्रुत एवं चरक संहिता में कास एवं श्वास व्याधि में भृंगराज तेल का प्रयोग बताया गया है | इसके पत्तों को मसलने से कृष्णाभ, हरितवर्णी रस निकलता है, जो शीघ्र ही काला पड़ जाता है | इसके पुष्प श्वेत वर्ण के होते हैं | इसके फल कृष्ण वर्ण के होते हैं | इसके बीज अनेक, छोटे तथा काले जीरे के समान होते हैं| इसका पुष्पकाल एवं फलकाल अगस्त से जनवरी तक होता है | आज हम आपको भृंगराज के आयुर्वेदिक गुणों से अवगत कराएंगे -
१- भांगरे का रस और बकरी का दूध समान मात्रा में लेकर उसको गुनगुना करके नाक में टपकाने से और भांगरा के रस में काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर सिर पर लेप करने से आधासीसी के दर्द में लाभ होता है |
२- जिनके बाल टूटते हैं या दो मुंह के हो जाते हैं उन्हें सिर में भांगरा के पत्तों के रस की मालिश करनी चाहिए |
३- भृंगराज के पत्तों को छाया में सुखाकर पीस लें | इसमें से १० ग्राम चूर्ण लेकर उसमें शहद ३ ग्राम और गाय का घी ३ ग्राम मिलाकर नित्य सोते समय रात्रि में चालीस दिन सेवन करने से कमजोर दृष्टी आदि सब प्रकार के नेत्र रोगों में लाभ होता है |
४- दो-दो चम्मच भृंगराज स्वरस को दिन में २-३ बार पिलाने से बुखार में लाभ होता है |
५- दस ग्राम भृंगराज के पत्तों में ३ ग्राम काला नमक मिलाकर पीसकर छान लें | इसका दिन में ३-४ बार सेवन करने से पुराना पेट दर्द भी ठीक हो जाता है |
६- भांगरा के पत्ते ५० ग्राम और काली मिर्च ५ ग्राम दोनों को खूब महीन पीसकर छोटे बेर जैसी गोलियां बनाकर छाया में सुखा लें| सुबह -शाम १ या २ गोली पानी के साथ सेवन करने से बादी बवासीर में शीघ्र लाभ होता है |
७- दो चम्मच भांगरा पत्र स्वरस में १ चम्मच शहद मिलाकर दिन में दो बार सेवन करने से उच्च रक्तचाप कुछ ही दिनों में सामान्य हो जाता है |
८- यदि बच्चा मिट्टी खाना किसी भी प्रकार से न छोड़ रहा हो तो भांगरा के पत्तों के रस १ चम्मच सुबह शाम पिला देने से मिट्टी खाना तुरंत छोड़ देता है